सेनानी
संपादित: सीमा शर्मा
"........तुम भूल ना जाओ उनको इस लिए कही ये कहानी...."
गीत लिखा गया है भारत-चीन युद्ध के परिप्रेक्ष्य में, कुछ समय पहले मैंने यह पढा की आजादी के दिवस को कोई नहीं भूल सकता, याद रखने में आसान पासवर्ड के लिए ।
इसे विनोद ना समझे यह अंतर्कथा
मर्मपूर्ण है।
श्रृंखला पर्वत शिखर की नहीं वैसी ही ऊंचाइयों भरे सेनानियों की आज से पन्द्रह अगस्त, २०२० तक दैनिक रूप से एक या एक से अधिक स्वतंत्रता सेनानी की लघु जानकारी दी जाएगी, अल्प समय में अधिक करने का प्रयास रहेगा:-
वीर गुण्डाधुर
सोमारू, बस्तर, ग्राम- नेत्तनार, धुर्वा जाति में जन्में यह चमत्कारिक व्यक्तित्व हैं, भूमकाल आंदोलन में इनकी सक्रियता रहीं, इससे उठा तूफान और इनके साहस का कोई सानी नहीं, फरवरी की दूसरी तारीख सन् १९१० में सम्पूर्ण बस्तर में आंदोलन हुआ, जिसका कारण अंग्रेजी सरकार की आततायी शक्तियों का प्रयोग था, शासकीय संस्थानों एवं सम्पत्तियों को निशाना बनाया गया, आंदोलन की शुरुआत पुसपाल बाजार की लूट से की गई, मूरत सिंह बक्षी, बालाप्रसाद नजीर, वीरसिंह, लाल कालन्द्री सिंह के सहायता से इन्होंने आंदोलन का जबरदस्त संचालन किया, लाल मिर्च एवं आम्र शाखाओं के प्रयोग को दारामिरी कहा जाता था जिससे सूचनाओ का आदान प्रदान किया जाता था, इनके द्वारा अंग्रेजों के सूचना प्रणाली को ध्वस्त करने से अंग्रेज भयाक्रांत हुए, इस आंदोलन के उठाव से अंग्रेज अफसरों क्रमश: कैप्टेन गैर तथा डे ब्रेट को रायपुर से बस्तर ५०० सशस्त्र सैनिकों के साथ गए, दुर्भाग्यवश इस आंदोलन का सन् १९१० मई, तक अंग्रेजो द्वारा दमन हो गया, जिसके लिए कई निर्दोष व्यक्तियों की जान ले ली गई। आदिवासियों को मदिरापान कराके मुखबिरी करते हुए सोनु मांझी नामक विश्वासघाती ने "वीर गुण्डाधुर" की सूचना अंग्रेजो को दे दी।
अंत तक वह अंग्रेजो के पकड़ में नहीं आये, वह गुर्रील्ला तकनीक में अभ्यस्त थे, तथा इनकी तुलना तात्या टोपे से होती है। गुण्डाधुर सम्मान से सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को सम्मानित किया जाता है, शहीद गुण्डाधुर के प्रशंसा गीत चाव से सुने एवं सुनाए जाते है।
वर्तमान में साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले को ₹ २,००,००० की धनराशि और प्रशस्ति पत्र दिया जाता है।
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