नागपंचमी
लॉक-डाउन और कोरोना संक्रमण के कारण, यूं तो भक्तों की मंदिरों अन्य धार्मिक स्थलों में उपस्थिति कम हो गयी है, परन्तु जैसा आपने पिछले पोस्ट में पढ़ा था सोमवती अमावस्या और शनि देव की पूजा हेतु सीमित संख्या में भी भक्तगण मंदिरों में उपस्थित थे, जहां सारे नियमों का पालन करते हुए पूजा अर्चना सम्पूर्ण हुई।
देखिए पोस्ट :हरेली
आज नाग पंचमी के अलावा कल्कि जयंती है, पंचांग में सावन माह के शुक्ल अथवा दूसरे पक्ष के पांचवी तिथि में नागपंचमी हर वर्ष मनाया जाता हैं। इस वर्ष यह २५ जुलाई को हैं, इस पंचमी को वासुकि नाग, तक्षक नाग और शेष नाग की पूजा की जाती है।
नीलकंठ महादेव के गले में आश्रय लिए, मंदार पर्वत से बंधे हुए वासुकि नाग से देवताओ एवं दानवों द्वारा समुद्र मंथन किया था। बिहार के बांका जिले में वासुकीनाथ, यानि शिवजी का मन्दिर हैं, इनका उल्लेख रामायण एवं महाभारत में भी आता हैं।
श्री वराहपुराण में प्रासंगिक, कश्यपजी और दक्षपुत्री कद्रू के पुत्र अनंत, वासुकि, महाबली, कम्बल, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शङ्ख, कुलिक, पापरजिल आदि है, इनके द्वारा मनुष्यों का नित्य संहार करने से व्याकुल प्रजा का इनसे सुरक्षा हेतु ब्रह्मा के समक्ष प्रार्थना पर क्रोधित ब्रह्मा ने श्राप दिया कि उनका संहार स्वयं की माता के श्राप से होगा, स्वयं के प्रकृति से असहाय इन प्रमुख नागों के अनुरोध पर ब्रह्मा ने उनके निवास स्थान हेतु सुतल, वितल और पाताल
लोक नियत किया, पंचमी तिथि को इस श्राप के घटित और ब्रह्मा द्वारा वर से कश्यपजी* के गृह वैवस्वत मनवन्तर* के आरंभ में पुनर्जन्म और पांडव वंशी राजा जन्मेजय के यज्ञ में दुष्ट सर्पों का नाश, एवं अपकारी और मृत्यु के निकट मनुष्यों के भक्षण की स्वतंत्रता से प्रसन्न वह सभी पाताल लोक को निर्गमित हुए।
(*कश्यपजी और काश्यप भिन्न है)
(*विवस्वान:- सूर्य (का एक नाम विवस्वान) के पुत्र मनु होने के कारण वैवस्वत; मनवन्तर:- इसका सम्बंध काल की गणना से है, जैसे, मनु तथा मनुपुत्रगण जितने समय तक सप्तद्वीप वासुमती का राज्य भोगते हुए धर्मपूर्वक अपनी ऊर्जा का पालन कर रहे है, वह समय मन्वन्तर कहलाता है, एक मन्वन्तर अर्थ ३०,६७,२०,०००, मानव वर्ष)
महाराज युधिष्ठिर के जिज्ञासावश पूछे प्रश्न में श्री कृष्ण ने इस तिथि के महात्मय का वर्णन किया की ऐसा ही श्राप कालांतर में इनकी माता ने इन्हें सौंपा कार्य करने से मना करने पर दिया था, जिससे वासुकि नाग मूर्छित हो गए ब्रह्माजी ने उनसे कहा की वह अपनी बहन का विवाह यायावर वंश के जरत्कारु से कर दे, भविष्य में उनसे उत्पन्न पुत्र आस्तिक, उन पाण्डववंशी राजा जनमेजय को समझा कर रुकवा सकेगा, यही तिथि श्रावण मास शुक्ल पक्ष के पंचमी तिथि को थी, एक वर्ष में बारह पंचमी होते हैं तथा प्रत्येक मास में अनंत, वासुकि, शेष, पद्म, कम्बल, अश्वतर, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालिय, तक्षक तथा पिंगल नामों को वर्णीत किया हैं, अतएव यह तिथि धन्य, प्रिय, पवित्रता और सम्पूर्ण पापों का संहारक सिद्ध है, एवं श्रद्धापूर्वक पूर्ण करने पर बाँधवगण सद्गति प्राप्त करते हैं। श्री राम एवं उनके अनुज को नाग पाश में बांधने वाले मायावी सर्प कद्रू के पुत्र थे, जिनसे प्राणरक्षा श्रीविष्णु के वाहन गरुड़ जी ने की थी।
अन्य कथाएं
'प्र' का अर्थ है 'प्रकृष्ट', कृति से 'सृष्टि', सृष्टि करने में जो प्रकृष्ट है उसे प्रकृति कहते है, सर्वोत्तम सत्वगुण के अर्थ में 'प्र' शब्द, मध्यम रजोगुण के अर्थ में 'कृ', शब्द और तमोगुण के अर्थ में 'ति' शब्द है।इनके एक प्रधान अंश का नाम देवी जरत्कारू हैं, ये कश्यपजी की मानसपुत्री है; अतः मनसादेवी कहलाती है, भगवान शिव की प्रिय शिष्या हैं, नागराज शेष की बहन होने के कारण से सभी नागराज इनका सम्मान करते है, यह नाग की सवारी पर चलती है जिससे इन्हें नागेश्वरी और नागमाता कहा जाता है, प्रधान प्रधान नाग इनके साथ विराजमान रहते है, ये नागों से सुशोभित रहतीं है और नागराज इनकी स्तुति करते है यह नागलोक में निवास करती है, ये ब्रह्म चिंतन में लीन रहती हैं, श्रीहरि के पूजा में सलग्न रहती है, जरत्कारु मुनि, जो कि भगवान श्रीकृष्ण के अंश है, की पत्नी है, और महान मुनिवर आस्तिक की माता हैं।
अन्य कथाओं में तक्षक नाग ने आस्तिक मुनि को वरदान दिया कि जो व्यक्ति ऊँ आस्तिकाय नम: का जाप करेगा उसे सांप नहीं कांट सकेंगे।
गरुड़ पुराण से : तक्षक नाग से राजा परीक्षित को डसने की बात सुन कर कई मन्त्रवेत्ता झाड़फूंक के लिए चले थे, जिनमें एक काश्यप नाम से मन्त्रवेत्ता थे, जो कि राजा से अपार धन मिलने की इच्छा रखते थे, उनके गुणों को जानते हुए, वह वृद्ध ब्राह्मण का वेश बना कर उनसे उनके अधीर होकर जाने का रहस्य ज्ञात किया और अपने रूप की वास्तविकता बताई और कहा कि वही तक्षक नाग है और उनके दंश से कोई नहीं बचा सकता साथ ही साथ अपनी शक्ति सिद्ध करने को कहते हुए एक हरे भरे वृक्ष को डंस कर आग जैसा जला दिया जिस पर काश्यप ने उसे फिर से अपनी बुद्धिबल से हर भरा कर दिया, तक्षक ने उससे परीक्षित को जिलाने का प्रयोजन जाना, और इच्छा से दून धन देकर विदा किया।
आगे.....
बात-बेबात में हम में से कई ने "यही तो कलयुग है", की उक्ति सुनी होगी, कलि (ब्रह्मा के पीठ से उत्पन्न, अधर्म) के अधर्म का शमन करने भगवान के अवतार हैं, भगवान कल्कि अश्वारूढ़, हाथ मे तलवार, धारित किये हुए है, जो उन्हें भगवान शंकर द्वारा वरस्वरूप प्राप्त है, का अवतरण वैशाख मास की शुक्ल द्वादशी के दिन सांयकाल सम्भलग्राम(वर्तमान मुरादाबाद के निकट), ब्राह्मण दंपति विष्णुयशा एवं सुमति के गृह, अधर्म का विनाश करने तथा सत्ययुग की स्थापना करने चतुर्भुज रूप में हुआ, तब प्रजापति ब्रह्मा के प्रार्थना से वह मानव रूप में आए।
अपने अभीष्ट कार्य सिद्धि के पश्चात वह स्वधाम को लौट गये, जहां इस उपपुराण में ये संबोधन भूतकाल को लेकर हैं, अन्य पुराण में भविष्य काल मे, जब सम्यक प्रकार से कलियुग आ जायेगा तब यह एक बहुत ऊंचे घोड़े पर चढ़ कर अपनी विशाल तलवार से म्लेच्छों से तीन रात में पृथ्वी से म्लेच्छ शून्य कर देंगे, पृथ्वी और अराजकता फैल जाएगी, सर्वत्र डाकू लूट पाट करेंगे, एक मोटी असीम धारा से जल बरसेगा, पृथ्वी, प्राणी, वृक्ष, गृह से शून्य हो जाएगी, बारह सूर्य उदय होकर के पृथ्वी को सुखा देंगे, और कलयुग समाप्त हो जाएगा।
अतः भगवान कल्कि इस कलयुग के अंत मे भी आएंगे।
सन्दर्भ:- गीताप्रेस, गोरखपुर(उ.प्र.), द्वारा प्रकाशित,जन पत्रिका, "कल्याण", श्रीवराहपुराणांक, श्री कृष्ण संवत ५२०२, एवं वि० संवत २०४६ का "पुराणकथांक", कल्याण संक्षिप्त ब्रह्मावैवर्त पुराण अंक।
Disclaimer:- No part of this article claims for methodical worshipping ways and it is just for informatory purpose.
सूचना:- व्याख्या का कोई भी अंश पूजा पद्धति के प्रकार से बद्ध नहीं हैं, तथा केवल जानकारी के उद्धेश्य से हैं।
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