दबे पांव
धीरे से
एक आहट भी नहीं हुई है,
यह एक बिल्ली का प्रवेश है।
अभी इस वक़्त मुँह झुका कर रसास्वादन करने ही वाली थी कि पास से जाती हुई मेरी छोटी बेटी ने जोर की आवाज दी, "बिल्ली",
थोड़े ही दूर में बैठी मैं, मेरी तन्द्रा भंग हुई, मोबाइल का तिलिस्म टूटते ही नजर पड़ी, बहुत धीरे से हल्के कदमों से मुड़ कर बिल्ली रफूचक्कर हो चुकी थी, मेरे पति तब तक आ चुके थे, आते ही एक नसीहत बमबारी हुई,
"यही पर बैठे हो तब भी देखा नहीं?"
मैंने हड़बड़ा कर कहा, "दबे पांव आएगी तो पता कैसे चलेगा!"
बेटी ने गवाही दी, "नहीं वह पी(दूध), नहीं सकी थी।"
मैंने उसे हैरानगी से देखा एक तो उसने उसका (दूर की नजर का) चश्मा लगाया ही नहीं था, और कहीं इस्तेमाल करने लायक न हो तो इस दूध का क्या करना होगा। यों में विचाररत थी।उसने पुनः कहा,
"पहले मुझे लगा इतनी बड़ी गिलहरी कैसे आ गई, फिर मैं समझी की यह बिल्ली है, इसलिए आवाज दिया! तब वह भाग गई।"
पति की शंका को दूर करते हुए मैंने कहा,
"वैसे भी दूध पूरी तरह से गर्म हैं, अभी ही गैस नॉब बन्द किया हैं",
"मगर इससे क्या होता है?"
"नहीं यहाँ छींट नहीं हैं(पूर्णविराम)"
मेरी छोटी बेटी जिसमे बालपन अब भी शेष हैं, एक मैग्निफाइंग ग्लास ले कर बिल्ली के पांव के निशान जांच रही थी, मुझे हल्की हंसी आई।
अचानक उसने दार्शनिक प्रश्नकर्ता बन मुझसे पूछा, "किसी एक पशु को दूसरे पशु का दूध इतना कैसे लुभा सकता हैं?"
मैंने सोचा अब के समय मे किसी की पहुंच ही उसे वह समान दिला सकती हैं, अनाधिकृत को भी!
स्कूली जीवन मे पढ़ी एक कहानी याद हो आई, जिसमे एक बालिका का किरदार एक कबरी बिल्ली को लकड़ी के पट्टे से मार कर मूर्छित कर देती हैं।
अधिक ध्यान न देते हुए मेरा ध्यान टी०वी० स्क्रीन पर चल रहे देवताओं और दानवों के मध्य अमृत वितरण के दृश्य की ओर चला गया।
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