अपादान कहानी

 अपादान


ददगार को किसी किस्म के प्रचार की जरूरत नहीं होती, पार्क में नया बेंच लगाना हो, राहत कोष के लिए अधोवृद्ध अवस्था में चंदा खुद इक्कठे करने जाना हो, निर्धन बच्चों के मुफ्त शिक्षा के लिए स्वयं प्रयास करना हो, या दिव्यांग जनों के संस्था के लिए सामग्री देना, आज इनका नाम अच्छेलाल के अलावा कुछ और है शायद किसी को याद भी नहीं होगा, उनका मानना था, भगवान पृथक नहीं हॄदय में ही निवास करते हैं। आज पहली ही किरण के साथ उनके नाम की चारो ओर नारेबाजी हो रही थी और पोस्टर्स लगे थे, चुनाव में खड़े हो रहे अच्छेलाल के पास एक से बढ़कर एक प्रस्ताव आ रहे थे,  कहीं नोट के, तो कहीं निर्वाचित होने पर, पद देने के, अब उद्विग्न होकर अच्छेलाल घर के पास ही टहल रहे थे। अचानक उन्हें अपने सभी अच्छे काम की बोली लगती सुनाई पड़ी बहुत विचारने के बाद मन ही मन कुछ प्रण करते हुए वह निर्वाचन कार्यालय पहुंच गए, नाम वापस लेकर उन्होंने अपनी नीलामी ही रुकवा दी।





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