देख लेते तो क्या बिगड़ जाता....?
साथ हमेशा रहता है,
परत
छुपाता राज़
कुछ उड़े परिंदे बतिया रहे थे,
कर फड़फड़ाहट भी ख़त्म,
टूटे ख़्वाब से जुड़े जो
लिख छोड़े थे मैंने
तुड़े मुड़े,
शायद फेंक दिया हो
किसी जूते के तले
फटी पुड़िया सा लिबास,
लपेटे
क्या ख़बर,
गर कोई ख़त समझ उठा ले
तो कहीं फाश भी हो
बंद अब भी है लेकिन मेरे लफ्ज़
ऊपर से
मुश्किल है कदमों का ख़ुद चल कर ख्वाहिश करना
मालूम करने के लिए
की जूतों के तले कुछ धड़क रहा है,
यों
गप्प करता तो
भी मेरी उम्मीद सरे राह
फिसलने से बच जाती।
-सीमा शर्मा
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