कविता संग्रह भाग तृतीय, थोड़ी सी बच्ची, हम पीछे रह गए और अन्य काव्य


थोड़ी सी बच्ची

एक प्यार भरा लम्हा और कुछ बिखरे हुए लम्हे, 
याद आ रहे, 
मेरी प्यारी गुड़िया, 
जब मेरे हाथ से तुम्हारे सुनहरे बाल टूट गए थे, 
तब दिखी मुझे एक हल्की सी नजर, 
और हम थे थोड़े से सहमे, 


तब मुझे तुम्हारे गुड्डे से बहुत डर लगता था,
सचमुच अगर मन का एक टुकड़ा भी मैं तुम्हारा बचा रखती, 
आज थोड़ी सी बच्ची मैं भी रहती।

—सीमा शर्मा 


हम पीछे रह गए 

बहुत जल्दी में थे तुम हम पीछे रह गए, 

फंस कर किसी तंग गली में,


हाथ मे डाली फूल की भींचे, रह गए,


बहुत जल्दी में थे तुम, हम पीछे रह गए,


फंस कर किसी तंग गली में,


 याद या घर की, पता नहीं,


आंख मींचे रह गए,


बहुत जल्दी में थे तुम,  


हम पीछे रह गए


टूट गईं मेरी डोर,






पतंग तुम्हारी खींचे रह गए, 

बहुत जल्दी में थे तुम, हम पीछे रह गए।

—सीमा शर्मा



लड़कियाँ 


बेटियां, 
जैसे, 
करती कोई नदी,
कलकल, 
या छलक आए, 
आंख से आंसू,
हर कोण में, 
शब्द में, 
और मौन में, 
बेटियां, 
प्रकृति का उत्कृष्ट विचार ।

—सीमा शर्मा 


मेरे मन का भागी



सोचते रहते हैं क्या हम,
तुमसे ही कहेंगे, 
पर तुम्हारे बारे में तुमसे क्या कहेंगे? 
सोचते हैं हम, 
तुम्हें लिख कर देंगे, 
तुम्हें हम छंद में परिवर्तित कर देंगे, 
मेरे कलम को चमत्कार करने आते है, 
पल भर में तुम्हें कायल कर देंगे, 
सोचते रहते हैं क्या हम, 
कह के तुमसे कभी नहीं कहेंगे!

—सीमा शर्मा 


कलपते मन



जब प्रेम का आगमन होता है,
मन आगन्तुक हो जाता हैं,
दुख में खिलना,
स्वप्न में मिलना,
आरंभ हो जाता है,
जब प्रेम का आगमन होता हैं,
पीड़ा से,
मन आगंतुक हो जाता है,
कुछ त्यागने को जी करता हैं, 
कुछ ललकारने को जी करता हैं,
कहे तो हो जाए दो-दो हाथ,
मेरा सच्चा या तेरा?


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