लघुकथा अंक भाग तृतीय
पाठकों आज उपस्थित है, लघुकथा अंक का तृतीय भाग लेकर, लघुकथा साहित्य का एक बिलकुल अलग प्रकार है, जिसमे बहुत ही कम शब्द में एक कथा कही जाती है, जिसमे उस कथा का प्रारंभिक भाग, उसके पात्र, उनके चरित्र, विभिन्न घटनाक्रमों को बहुत ही सुलभ गति से परंतु शीघ्रता से अन्त तक पहुंचाया जाता है, मात्र तीन या चार वाक्य ही काफी होते है एक चरित्र का विश्लेषण करने के लिए फिर उसके साथ साथ उसकी कहानी में खुद एक पत्र बन जाने में, पिछले दो प्रयास को आपका बहुत सहयोग मिला, आशा करती हूं यह भी आप पसंद करेंगे।
अतीत
जुदा हो चुके वापस कभी नहीं आते",
"ज़िद नहीं हैं,
मसरूफ़ रहने का मेरा अपना तरीका है",
चेहरा नाक की ऊंचाई तक फिर आकाश छू रहा था!
(लघुकथा)
लंबित जीवन
"जीना कब शुरू करोगे "फिर अपने लिए भी सोचते है!""हाँ बस अपनी सारी जवाबदारी से छुट्टी हो जाए,
'मरने के बाद कौन जीता है भला?'
वह मन में सोच रहा था।
(लघुकथा)
वृद्धावस्था
रोज़ की बात है मि. फलां रात के भोजन के बाद,
अकेले-अकेले, टहलने जाते है, सड़क काफी सुनसान रहती हैं, पर आज बात कुछ अलग है,
आज दूर दूर तक, रिमझिम फुहार भी, साथ चल रही थी।
(लघुकथा)
मन के अवयव
'कुछ तो ख़बर देते अपनी चिंतित हो रही हूँ' विह्वलता बोल उठी।
'पता नहीं और कितनी प्रतीक्षा करनी हैं', अधीरता ने कहा।मन का एक कोना चित्त में पड़ा, बोल उठा: तुम लोगो को मनुष्य ने आकरण जन्मा हैं!
कल्पना: तो तुम हमारे साथ नहीं हो?,
"केवल लेश मात्र",
यो द्वंद चल रहा था, तभी, एक आगन्तुक परछाई आती दिखी।
दृष्टि :- कोई आता दिख रहा है!
स्वर : बेटा! कितनी देर कर दी !,
अब बारी जिह्वा की थी : माँ इतना परेशान क्यों हो जाती हो, बता के तो गया था दोस्त के घर जा रहा, जाओ अब आराम से सो जाओ!
चित्त शांत, अधीरता खोह में छुप गई आगामी आकुलत्व तक, विह्वलता भी आंख मूंदकर कल्पना के साथ स्वप्न में लुप्त हो गई।
(लघुकथा)
द्वारा: सीमा शर्मा
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