लघुकथा भाग पांच, नरमी, सलाह, और अन्य लघुकथाएं। मशविरा, रोज़ाना की एक बात,

लघुकथा (भाग पांच)
Hello Friends,
 आज पढ़े लघुकथा अंक पांच।



नरमी

"जब बात बिगड़ जाए..........", 

(बीच में टोक कर)

"उसे डांट कर सुधारना "

"अरे रे रे यह क्या कह रहे", 

"आ हां बच्चा बिगड़े तो..."


Father's discussing young generation actions

"मैंने बच्चा नहीं बात कहा था" 
"ओह माफ करना, मेरे बेटे ने मुझे बहूत परेशान कर दिया है, वैसे.. बात बिगड़े तो थोड़ा ज्यादा नर्मी से पेश आया करो" 
"तुम भी..", 
"हां शायद यही ठीक है। 

(लघुकथा)


सलाह मशविरा

"अगर शिकार के मुँह से उफ़्फ़ नहीं निकलेगा! तब भला लाचारगी का क्या भाव मिलता?" "फिर भी दोयम दर्जे के नौकरी से बाज आना चाहिए",
Two person discussing unemployment problem



"कौन जानता है दोयम कौन आ'ला कौन, फिर जितनी होशियारी दिलानी मुनासिब थी हमने दिलाई "

"तब तो ये भी बहुत है", उसने दीदे नीची

कर कहा ।

(लघुकथा)


रोज़ाना की एक बात

"चलो, अकेले ही टहलते हैं",
"भले मरुस्थल ही हो?" 
Man walking in desert


अवाक देखते हुए, उसने इशारा किया। राहगीर समझ सकता उससे पहले एक खंजर उड़ कर सीधे उसके मर्म स्थल लग गया, वह पल के पल में ढेर हो गया। तलाशी लिया गया मात्र कुछ गहने मिले, मगर पीतल के निकले, टोली के सरदार ने अफसोस से कहा, "बेकार मारा गया।"


श श श श 

"अपनी सुनाओ तुम कैसे हो",
"कुछ ठीक नहीं है",
"ओह हुआ क्या?",

" श श श .... धीरे..... मेरी सास सो रही है"

(लघुकथा)


फेसबुक

"शब्दों के धुरंधर को आज शब्द नहीं मिल रहे, बस इतना पूछा है मैंने कुछ कर के भी दिखा देते, मां के लिए जो इतनी कविताएं गढ़ते हो फेसबुक पर ।" 
बगले झांकते बड़े भाई की पत्नी ने कहा: "तुम्हारी भी तो मां है अपने साथ ले जाओ" छोटा सकपका गया।
Interview of an aged writer



अंततः अंतिम संवाद के बाद अंतिम संपत्ति को तीन तीन महीने के लिए भाग किया गया।

(लघुकथा)


लेखिका

"किसी की याद लिखवाती है हमसे

वर्ना आयु का प्रकोप ऐसा है की चार पग। चलूं तो, ऊंह ऊंह", मैं खांसने लगती हूं। पत्रकार : पिचासी की अंक और बस आपकी लेखनी सरपट दौड़ते जा रही हूं, क्या सचमुच में किसी अन्य का ही प्रभाव है?",
Mother's illness and sons


 "ऊंह वह बात ये है, ऊंह ऊंह, ऊंह " मैं अचेत हो कर गिर पड़ी, उपस्थित सभी घबरा गए, मेरे नाम का स्वर, सर्वत्र गुंजायमान था। मैं खांसते खांसते अदृश्य हाथ पकड़ कर आगे बढ़ गई।

(लघुकथा)


घी

"ये बात तो ग़लत है पर सीधी उंगली से घी न निकले तो, उंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है"

"हुंह"

कुछ दिन बाद

पुलिस थाने में परेशान वह एक दूसरे को ताक रहे थे किसी ने घी का डब्बा आग के ऊपर ही रख दिया था।

(लघुकथा)


पार्टनरशिप

"मैंने पूछा था? ना मैंने तुम्हें कभी नहीं पूछा, तुम जबरदस्ती गले पड़ रहे", 
"वाह! चोरी पर सीना जोरी, साथ दिया मैंने पूरा, अकेले तुम भी माल नहीं उठा सकते थे, समझे!" 
Two thief fighting before police


" अरे जाने दे जाने दे, बड़ा आया", दोनो चोरों का झगड़ा बढ़ते हुए हाथापाई की नौबत आ गई, लड़ते लड़ते वह खुद ही पुलिस के पास पहुंच गए।

(लघुकथा)

समाप्ति

पाठकों आशा है यह अंक आप सभी ने पूरा पढ़ा हो, अन्य अंक पढ़े, इसी ब्लॉग में।



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टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
Nice