श्रृंखला-वीर नारायण सिंह, First Martyr From Chhattisgarh

 क्रमवार

सम्पादित: सीमा शर्मा

वीर नारायण सिंह
१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में बलिदानी, शहीद वीर नारायण सिंह, सोनाखान के ज़मींदार परिवार में १७९५ में जन्मे थे, इनके पिता द्वारा अंग्रेज और भोंसला के आततायी राज्य के विरुद्ध बिंझवार आदिवासी समुदाय के मदद से १८१८-१८१९ में विद्रोह किया गया था।
१८३० में पिता के मृत्यु के बाद यह जमींदार बने  यह सहृदय, न्यायप्रिय और उद्यमी थे , नए करों के विद्रोह कर कारण रायपुर में डिप्टी कमीशनर इलियट नाराज हो गया। १८५६ में छत्तीसगढ़ भयावह सूखा पड़ा,  कसडोल व्यापारी माखन के अनाज भंडार को तुड़वा दिया। ब्रिटिश सरकार जो पहले ही भरी हुई बैठी थी अधिकारी इलियट ने वारंट निकाला, जिसके परिणामस्वरूप यह २४/०८/१८५७ को सम्बलपुर में गिरफ्तार कर लिए गये। जहां से ४ दिन बाद २८ को  तीन साथियों के साथ सुरक्षित निकल गये, जहां इनकी ५०० सैनिकों की सेना बनाई, कड़ी मुठभेड़ के बाद अंग्रेजों ने चालाकी से गिरफ्तार कर लिया और १०/१२/१८५७ को फांसी दे दी जहां "जय स्तम्भ" खड़ा है, यह रायपुर में स्वतंत्रता आंदोलन के उठाव के का कारण बना।
छत्तीसगढ़ शासन वर्ष २००१ से आदिवासी और पिछड़े वर्ग के उत्थान कार्य पर शहीद वीर नारायण सिंह सम्मान देती हैं।
वर्तमान में आदिवासियों के उत्थान की दिशा में कार्य करने वाली संस्था या व्यक्ति को ₹ २,००,००० तथा प्रशस्ति पत्र दिया जाता है।

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