स्वतन्त्रता दिवस
एक तो उचित समय में कर के
दूसरे ईमानदारी से पूरा कर के आनंद ले सकते है,
कोरोना काल मे कोरोना वारियर्स पर संक्रमण के बराबर ही हमलवारों का खतरा देखते हुए धीरे-धीरे हम साल पूरा करते आ रहे है।
लाल किले में झंडा फहराया जाना देश के सभी प्रमुख स्थानों पर झंडावंदन फिर राष्ट्रीय गीत, राष्ट्रीय गान, सामान्यतया बहुत से स्थानों में मिष्ठान अन्य सामग्री वितरित की जाती है, कुछ अग्रदूत ऐसे भी हैं जो दुर्गम स्थल में जाकर के भी सेवा के किसी अवसर से नही चूकते, कुछ हाथ आया मौका भी गंवा देते है, आँचलिक जगहों में आज भी झंडे का प्रथम प्रवेश भी नहीं हुआ हैं।
१५ अगस्त के अलावा एक तारीख जिस दिन इंडिया इंडिपेंडेंस बिल, १९४८, लाया जाने वाला था उसमें ३ जून अंकित था। जब जापानी सेना ने समर्पण किया था, उसी तारीख के शुभ लक्षण के कारण या सन् १९४८ तक जिन्नाह का फेफड़े के कैंसर से ग्रस्त होना था, कारण?, जिससे विभाजन में समस्या ना आये।
अट्ठारह जुलाई, उन्नीस सौ सैंतालीस, को ब्रिटिश संसद ने इंडिया इंडिपेंडेंस अधिनियम, १९४७ पारित किया ताकि भारत और पाकिस्तान बन सके, पन्द्रह अगस्त से भारतीय रियासतों पर अंग्रेजी सरकार का अधिकार खत्म हुआ और सम्पूर्ण संप्रभु शक्तियों का ब्रिटिश कॉमन वेल्थ को त्यागने समेत हस्तांतरित हुआ, और एकीकृत भारत का केंद्रीय विधान सभा भी खत्म हुआ, जिसके जगह संविधान सभा को ही कानून निर्माता माना गया, जो अब अंग्रेजो के असीम ताकतों का भी उत्तराधिकारी भी बन गयी। तथा अर्धरात्रि, १४-१५ अगस्त १९४७ को भारतीयों को उनकी स्वायत्ता सौंपी गई। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने उन अथाह संघर्षों और त्याग को याद किया, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्ताव किया कि संविधान सभा के सभी सदस्य भारत और उसकी जनता की सेवा की शपथ लेंगे।
प्रसव काल के दौरान चिकित्सीय कारण या स्वास्थ्य अलाभ की स्थिति में जच्चा बच्चा कठिनाई में आ जाते है, अब जो 'जी' जाए उसी को जीवन पर्यंत यह तारीख एन केन प्रकारेण सालती रहेगी, भारत के आजाद होते ही इस पवित्र भारतभूमि को अनन्य कष्ट हुए, उस तारीख को पीड़ित अपने कष्ट बढ़ाने वाले तो सभी प्रमुख नेता समेत आजादी के मतवाले शिरोधार्य करते है, ऐसी अबूझ मारकाट मची थी कि उसकी पीड़ा आज भी देश के अंग प्रत्यंग में विभिन्न समस्याओं के रूप में गोचर हैं।
पिछले पोस्ट में आपने पढ़ा कि सरदार पटेल पर कितने देशी रियासतों की दारोमदार थी।
जिस समय आजादी मिली गांधीजी उस समय बंगाल में जन-जन तक प्रतिघर देश के लिए अलख जगा रहे थे। सन् १९४६-४७ में हुए साम्प्रदायिक दंगे में टीस से भर उठे उनमे से एक थे ठक्कर बापा, साम्प्रदायिक दंगे की स्थिति से व्याकुल यह ७७ वर्ष की उम्र में भी गांधी जी के पास नोआखाली दंगे शांत कराने गये।
गांधी जी के अनुयायी, पद्मभूषण मन्नतु पद्मनाभन स्वतंत्रता संग्राम के अंतिम दिनों में केरल कांग्रेस का नेतृत्व करते रहे, त्रावणकोर को भारत से पृथक करने के दुस्साहस के प्रति कड़ा विरोध जताया और ६८ साल के उम्र जेल चले गये, १९४८ में यह विधान सभा के सदस्य भी रहे।
आजादी के बाद देश के सामने कई बड़ी समस्याएं आई थी, विभाजन के फलस्वरूप देश के कई भागों में हिन्दू-मुस्लिम दंगों से धरती दग्ध हो रही थी, जब हजारो के संख्या में अफसर पाकिस्तान चुन कर चले गए, तब प्रशासन की कठोर समस्या पर सरदार पटेल ने अपनी विलक्षण बुद्धि से काबू पाया उन्होंने ही भारतीय प्रशासन को इंडियन सिविल सर्विसेज के स्थान पर निर्मित किया। सरदार पटेल ने सरकारी खर्चो में ७८ करोड़ की कमी की।
स्वतंत्रता में बाधक बनने को तैयार अँग्रेजो ने मुस्लिम लीग को महत्ता देने समेत देशी रियासतों को पूर्ण स्वतंत्रता देते हुए, "जाओ तुम चाहे जहाँ" का पत्ता भी खेला, तब सरदार पटेल की अपरिमित विलक्षण बुद्धि से स्वतन्त्र होने के स्वपन्द्रष्टाओं राजा और नवाबो को भारत मे शामिल किया।
संविधान
एक संविधान किसी राष्ट्र के स्वतंत्रता का खुला समर्थक हैं।
संविधान सभा अपने शुरुआती दशा दिशा में जब इस बात पर ध्यान लगा रही थी कि संविधान के मुख्य आदर्श क्या हो? जो लोकतांत्रिक महिमा को भी खण्डित ना करे उस समय पहले ही शंका और अविश्वास की लहर चल रही थी, पिछले पोस्ट में आपने मुस्लिम लीग की भूमिका जान ही ली हैं, दिसंबर, ६, १९४६, को ब्रिटिश सरकार ने वक्तव्य दिया कि क्या यह संविधान आवाज है या देश के अनिच्छुक राज्यो पर थोपी जा रही है, जब कि यह विदित हैं, की एक विदेशी चार्टर मात्र के माध्यम से छोटे से लेकर बड़े सभी राजाओ की अंग्रेजो के समक्ष क्या स्थिति थी, अंग्रेजी सरकार की स्थिति वैसे ही जर्जर हो चुकी थी ऐसे तर्क स्वतन्त्रता हेतु एक प्रस्तावित उद्देश्य से जल्द ही सुलझा लिए गए। वही अन्य देशी रियासतों ने यह कहना शुरू जर दिया कि ये शक्तियां केवल संप्रभुता से ली जा रही हैं ना कि आम जनता से।
विसंगतिया
वो जो लगन है, जो भारत के लिए दीवानों की टोली बन जाती हैं, जिसके लिए अनगिनत शहादतें हुई है, क्यों उसके लिए कई किस्म के कमतर शब्दो का प्रयोग, सेना के लिए, सरकारी संस्थानों/प्रतिष्ठानों के लिए, दुर्व्यवहारी होना आजकल cool बनते जा रहा है, मानो आजादी का अपशब्द कह सकने के अलावा कोई मोल नहीं हो।यहां तक कि कुछ trendy जनों और shout culture में यह कसौटी बन गई हैं, जब कि कोई भी स्वतन्त्रता जस का तस बिना किसी निर्बंधन या मनाही के नहीं है।
टिप्पणियाँ