भारत छोड़ो आंदोलन
श्रृंखला(क्विट इंडिया)
क्रमवार
भारत छोड़ो आंदोलन का आगाज
भूमिका
भारत पर शासन को और अधिक सुलभ बना देने के लिए अंग्रेजीदां सरकार ने भारत सरकार अधिनियम १९३५ पारित किया, अप्रैल १९३६ के लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस ने इसे अस्वीकार्य बताया, सर सी.वाय चिंतामणि जैसे उदार वादी नेताओ ने भी इसे भारतीयों के विरुद्ध कहा था, कांग्रेस का मानना था कि ऐसे संविधान का क्या लाभ जो वयस्क मताधिकार से निर्मित न हो या उसके समकक्ष न हो? हालांकि फरवरी में हुए १९३७ के चुनाव में न केवल हिस्सा लिया बल्कि पूर्ण बहुमत प्राप्त की, १९३७ में ही बर्मा को अंग्रेजों ने पृथक कर दिया, मद्रास, केंद्रीय प्रान्तों, एवं बिहार ओडिसा के संयुक्त प्रांतों में बहुमत में रही, बॉम्बे, बंगाल, असम, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रान्तों में तथा सिंध एवं पंजाब छोड़ कर सभी जगह एकमात्र उदघोषित पार्टी बन कर उभरी, वही मुस्लिम लीग को एक भी स्थान प्राप्त नहीं हुआ, जीत कर भी कांग्रेस ने कार्यालयों को ग्रहण कर के मंत्रिमंडल बनाने से यह कहते हुए इंकार किया की उन्हें तत्कालीन वाइसराय लीलनिथगो से आश्वासन चाहिए कि उनके गवर्नर जनरल उनके दैनन्दिन कार्यो में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे, ऐसी आश्वासन मिलने के बाद ये कार्यालय ग्रहण किये गए, और मंत्रीमण्डल बनाये, जो अनवरत रूप से दो वर्षों तक चला, द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रारम्भ होते ही सेप्टेम्बर १९३९ में भारत को अंग्रेजो ने युद्धरत देशों में शुमार कर लिया, कांग्रेस ने उचित शब्दो एवम प्रकार से इसका पूर्ण विरोध किया, जिसके फलस्वरूप पंजाब के और सिंध के प्रान्तों के अलावा ८ प्रान्तों से इस्तीफा दिया, जिसे मुस्लिम लीग ने तीन रुचार पुस्तिका बांट कर मुक्ति दिवस के रूप में मनाया साथ ही साथ आरोप लगाया कि कांग्रेस अपने क्षेत्रों में मुस्लिमो से सौतेला व्यवहार करती थी, कांग्रेस ने युद्धोन्माद में लिप्त किसी भी कार्य को बढ़ावा देने से इनकार किया और कहा वह साम्राज्यवाद या विस्तारवाद को बढ़ावा देने की नीति का भरपूर विरोध करती है, जिसके बाद मार्च, १९४० में लाहौर अधिवेशन में जिन्नाह ने दो राष्ट्र की नीति का पटाक्षेप किया, तथा हिंदुस्तान और इस्लाम की भिन्न बताया, बेहद आहत इस वक्तव्य से गांधी जी मे कहा कि ऐसी स्वतंत्रता नहीं चाहिए जो अंग्रेजो के छोड़े हुए भग्नावेष से मिले, तथा अब युद्ध की स्थिति में स्वतंत्रता प्रदाय किये जाने के वचन से भारत सहयोग करेगा।
यूरोप में युद्ध की बढ़ती हुई गम्भीरता को देखते हुए भारतीय संसाधनों के अधिकाधिक उपयोग के लिए एकतरफा बनाया गया अगस्त प्रस्ताव ८ अगस्त १९४० को आगे रखा। जिसमे यह कहा गया कि कार्यकारिणी परिषद तथा युद्ध हेतुक के परामर्श परिषद के गठन के अंतरिम उपाय को न रोका जाए, जहां राष्ट्रीय जीवन खुद युद्ध के संघर्षों में ग्रस्त है, संवैधानिक उपबंधों की समीक्षा नहीं कि जा सकती, तथा युद्ध के पश्चात संविधान सभा का गठन भारतीय संविधान के लिए किया जाएगा और किसी समझौते के जो संविधान सभा गठन में सहयोग करे का वह स्वागत करते हुए प्रतिसहयोग करेंगे, रक्षा समझौते को ध्यान में रखते हुए, भारतीय राज्यों से संधि अनुरूप उनके स्वयं के आर्थिक, राजनैतिक एवं सामाजिक संरचना के अनुरूप स्वयं के संविधान रचना करने के अधिकार को सुरक्षित किया।
मुस्लिम लीग के तुष्टिकरण हेतु ऐसे किसी भी संविधान को नकारने का संदेश दिया जो किसी इतने प्रभुत्व व बहुतायात समुदाय के हितों की रक्षा नहीं करेगी, या आहत करती है। तब, महात्मा गांधी ने कहा था कि तत्कालीन समस्या स्वतंत्रता की नहीं बल्कि जीने के अधिकार की है, यथा आत्म अभिव्यक्ति की।
१६ सिंतबर १९४० के प्रस्तावना में कांग्रेस ने अपने युद्ध संबंधी सहयोग के वचन को अस्त होने बताया,
१७ अक्टूबर १९४० को सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ किया।
क्रिप्प्स मिशन के असफलता के बाद गोवालिया टैंक मैदान में गांधी जी ने भाषण दिया अगस्त १९४२ में कांग्रेस ने गांधी जी के सुझाव पर प्रसिद्ध भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित किया यूसुफ मेहर अली का दिया नाम क्विट इंडिया गांधी जी को पसन्द आया यूसुफ मेहर अली ने इस नाम से किताब भी प्रकाशित की, क्विट इंडिया का मतलब था अंग्रेज तुरंत भारत से चले जाएं नही तो बहुत जबरदस्त आंदोलन छेड़ दिया जाएगा सवेरे ही सब नेताओ को अंग्रेजो द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया, पर आंदोलन तेजी से चलता रहा, करो या मरो का नारा गांधी जी ने ही इस समय दिया था, दूसरे दिन बम्बई में पूरी हड़ताल हो गयी, सारे शहर में इतने बड़े नेताओं की गिरफ्तारी से रोष फैल गया। इसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, जिसके बाद प्रदर्शनों का जोर चला, मन्त्रणा, बैठक, हड़ताल, जुलूस की बहार आ गई, अंग्रेजी सरकार की नींव ही हिल गई थी, मगर यह विरोध का भी लाठीचार्ज, गोलीबारी, सम्पत्ति जब्त करने से, गिरफ्तारी से दमन किया, जनता ने इसमें कई डाकखाने, म्युनिसिपल सम्पत्ति,रेलवे, पुलिस स्टेशन्स भी ध्वस्त कर दिए, इस समय अंग्रेजी सरकार ने अखबारों को नियंत्रित करने के लिए निषिद्ध किया गया, इससे अंग्रेजी सरकार को आमजनता की ताकत का अहसास हुआ।
सितम्बर, १९४२, में विस्फोटक पुलिस पर फेके गए, १९४४ में महात्मा गांधी को मुक्त किया गया, जिससे इस आंदोलन ने ऊंचाई खो दी।
कई नेता जो इसमें गांधी जी के साथ थे उनमे से एक थे।
श्रीनिवास शास्त्री
सन् १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्होंने इस बात और जोर दिया कि महात्मा गांधी आदि कांग्रेस नेता ही देश के वास्तविक नेता है, और ब्रिटिश सरकार को उन्ही से राजनीतिक समझौता करना चाहिए, क्रिप्प्स मिशन के केंद्र में भी इनका यही मत था। यह सिद्धान्तवादी राजनीतिज्ञ श्रीनिवास शास्त्री की रामायण में आस्था थी जिसकी उन्होंने ३० व्याख्यान दिए, और वह अब प्रकाशित है,उनका मत था की रामायण के प्रचार से राष्ट्र कल्याण अधिक हो सकता था।
पट्टाभि सितारामय्य
अखिल भारतीय देसी राज्य प्रजा परिषद के १९४६ से १९४८ तक रहे अध्यक्ष और गाँधीज्म एंड सोशलिज्म के लेखक डॉ० सीतारामय्य १९२० में गांधी जी के प्रभाव में आये, मार्च १९४२ के क्रिप्प्स मिशन को देशी रियासतों के समस्याओं से स्टैनफर्ड क्रिप्प्स को अवगत कराया, भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने से यह जेल में डाल दिये गए, डॉ० पट्टाभि भारत के संविधान सभा मे चुने गए थे,
सरोजिनी नायडू
गोल्डन थ्रेशहोल्ड, बर्ड ऑफ टाइम, ब्रोकन विंग की कवियत्री, भारत कोकिला, गांधी जी से प्रभावित थी, वह कई बार जेल गयी, आखिरी बार भारत छोड़ो आंदोलन के समय जेल जाने के बाद तीन साल बाद अन्य नेताओं के साथ मुक्त हुई।
पंडित रविशंकर शुक्ल
ने छत्तीसगढ़ से भारत छोड़ो आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई, अधिक पढ़ने के लिए:-
.पं० रविशंकर शुक्ल
वल्लभ भाई पटेल
८ करोड़ ६५ लाख, ५ लाख वर्गमील के ५६२ देशी रियासतों को जोड़ने वाले, सरदार पटेल को भारत छोड़ो आंदोलन में जुड़ने से वल्लभ भाई पटेल गिरफ्तार किए गए जहां उन्हें १५/०६/१९४५ को अन्य नेताओं के साथ मुक्त किया गया।
स्वतंत्रता के बाद सूचना प्रसारण विभाग के सदस्य, और भारतीय रियासतों का विभाग से सम्भाला, जिसके बाद वह उपप्रधानमंत्री रहे।
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दूसरी विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप राजनीतिक संसार मे उथलपुथल मचा दिया, विश्व को दो बड़ी शक्तियों का प्रादुर्भाव देखने को मिला जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ समाजवादी गणराज्य आते है, कई राज्यो ने समाजवाद अपनाया, और साम्राज्यवाद के सेना और शक्ति का हास् हुआ, अब ब्रिटेन मात्र ही शक्तिशाली नहीं था, जिसके बाद उदार वामपंथी विचारधारा वाली राजनीतिक पार्टी है, १९वीं सदी के पूर्वार्ध में, मजदूर संगठनो, समाजवादी राजनीतिक दलों के उठाव के साथ हुआ। इंग्लैंड के सामान्य चुनाव कंज़र्वेटिव पार्टी और लेबर पार्टी के मध्य हुई जिसमें लेबर पार्टी की जीत हुई।