एकदन्त, दयावन्त, चारभुजाधारी
के आगमन की बड़ी उत्सुकता रहती है, आस पास के सभी ही ऐसे सभी पंडालों में घूम फिर कर आते रहते है, पास ही के पंडाल में, शुरू के डन से ही ऊँचाई ओर था, सेवा टहल से जुड़े सारे कार्य उस घर के घरेलू नौकर भोलू पर था।
कुछ दिनों से पंडाल और उस संचालक समूह को किसी लगातार होते हुए कमी का अहसास हो रहा था, धीरे से लगने लगा कोई साया उन चीजो को इकठ्ठा कर-कर के गायब किये जा रहा था, एक दिन विधिवत तीन चार जन कैमरे और गवाह समेत अनुमान से किसी रास्ते से जाने की इच्छा रखते हुए निकले, अचानक वर्षा शुरू हुई उन लोगो को बारिश से बचने के लिए एक शादी के नीचे छांव लेना पड़ा, तब कहीं से कोई आता लगा,
एक के मुँह से निकला "यह बात है"
"अरे मुझे तो पहले ही से शक था ये इस भोलू की कारस्तानी है"
"यही प्रसाद भारी मात्रा में उठा ले जाता है"
"इस कमी का कारण यह भोला और भला दिखने वाला भोलू है यकीन नहीं होता"
अचानक आई वर्षा से बचने का इंतजाम उनमे से किसिस ने नहीं किया था, भोलू उन्ही के तरफ आता दिखा।
"प्रणाम भइया"
चारो ने मुँह बिचकाया,"हम सब जान चुके है"
भोलू को समझते देर नहीं लगी, ये चारों कब से उसके पीछे क्यों आ रहे है।
भोलू भौंचक हो बोला "क्या?"
"अच्छा छोड़ो, ये सुनो, आपके पिता जी ने कहा था, प्रसाद जरूरत से ज्यादा बन जाता है, और शाम होते तक ठंडा करना पड़ता हैं, तो इसे पास के गरीब बच्चों में बांट आया करो, इस वजह से मैं पास के बस्ती में गरीब बच्चों ने यह अतिरिक्त प्रसाद बांट आया करता हूँ"
"आप मे से किसी को संग आना हो तो एक मेरे छाते के नीचे आ सकता है!"
"ओ हो पकड़े गए तो पिताजी के नाम का बहाना बनाते हो, जिसको खाना हो वह स्वयं नहीं आ सकते क्या?, क्या तुम्हें नहीं पता भगवान के दरवाजे पर कोई भेदभाव नहीं रहता है!"
"ये तो आप भी अभी ही कह रहे हो, वरना मुझसे पहले आपके पिताजी ने आपसे प्रसाद वितरण के बात पर विचार करने को कहा था"
अपनी गलती के एहसास के साथ, उस अपयोजन का कारण उन सभी युवा संचालकों को समझ आ चुका था।
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