निश्चल प्रवृत्ति
सन्त तुकाराम जी से उनकी पत्नी ने कहा कि वह जा कर खेत से कुछ गन्ने तोड़ कर ले आए, संत तुकाराम चले गए, पहले तो एक गठरी बनाई, वापस लौटते समय जिन भी जनों ने गन्ने मांगे, सबको बांटते हुए घर की ओर जा रहे थे, एक-एक कर गठरी खाली होती गई, यहां तक कि केवल एक गन्ना बचा, पति के इस सन्त प्रवृत्ति से परिचित उनकी पत्नी जीजीबाई क्रोध से भर उठी, उसी से उनके पीठ पर दे मारा, इससे गन्ने के दो टुकड़े हुए, सन्त तुकाराम जी ने उसी निश्चल भाव से कहा "लो सहज ही बंट गया, एक टुकड़ा तुम खाओ, एक टुकड़ा मैं खाता हूँ।"
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